
कोई नहीं। मन है। उड़ान भरता है। सपने देखता है। गिरता है। जख्मी होता है। उठता है। चलता है। हँसता है। रोता है। गुनगुनाता है। मन है। इसे हासिल है छूट। कुछ भी कर लेने की। तभी तो ये मन है। तन की सीमाओं के पार। अपार विस्तार। जान है ये मन।
सोच कर देखिये। बिना मन कैसा होगा जन। शायद मुर्दा होना इसी अवस्था को कहते होंगे। काबू करने की तमाम कोशिशें नाकाम हुईं। सवारी गाँठने की साधनाएं फेल हुईं। अब दोस्ती कर ली है मन से। खुद को इसके हवाले कर निश्चिन्त हो गया हूँ। जब-जब जो-जो सुख दुःख देता है मन, कुबूल कर लेता हूँ बहुत मन से। आजकल बड़ी शान्ति है। खुद से लड़ना जो छोड़ दिया है।